रविवार, 1 नवंबर 2009

सरकार सिखा रही चोरी करना !


हाल ही में मैं छठ के मौके पर घर गया था...अपने गांव में छठ पूजा देखने का अलग आनंद है.....नदी किनारे कुछ लोगों का सुबह-शाम जमावड़ा और उनका उत्साह....बच्चे से लेकर बूढ़े तक हर कोई शामिल होता है छोटे-से-छोटे काम में। और ऐसे ही समय पर मतलब समझ आता है 'गांव' का...जी हां उस गांव का जिसका मतलब होता है सामाजिक जिम्मेदारी....जो शहरों में देखने को नहीं मिलती....खैर...इस बार मुझे गांव के स्कूल के मास्टर साहब के कुछ वचन सुनने को मिले....उनके वचन कितने सच थे या उस पर झूठ का परदा लगाया गया था...इसका फैसला आप ही करें....मास्टर जी कहना था कि सरकार हमें चोर बना रही है.....कैसे भई....दरअसल गांव के स्कूलों में दोपहर भोजन का कार्यक्रम सरकार चला रही है....जिसको चलाने की पूरी की पूरी जिम्मेदारी स्कूल के शिक्षकों पर होती है.....मास्टर साहब का कहना था कि एक तो बच्चों को खाना खिलाने के पचड़े में पढ़ाने का काम खराब होता है...कैसे...अब खाना तो कोई पैकेज फूड है नहीं कि बच्चों को दे दिया और हो गया काम...अब एक मास्टर साहब इसी काम में लगे रहते हैं कि खाना बनाने वाला आया कि नहीं....रसोइया कहीं खाने के सामान में से चोरी तो नहीं कर रहा....अगर खाना सही न पका हो तो गांव वाले कहीं पिटाई न कर दें..किसी दिन खाने में कुछ कीड़ा-वीड़ा या कंकर पत्थर निकला तो मास्टर साहब की खैर नहीं....अब भई गांव वाले को कौन बताए कि आनाज सप्लाई करने वाला ठेकेदार लाख कहने पर भी सुनता नहीं...और जितना हो सके पैसे बचाने की जुगत में रहता है...अब अगर उससे कोई शिकायत करे तो करे कैसे गांव या फिर आसपास के बाहुबली जो ठहरे....कहीं लेने के देने न पड़ जाएं.....मास्टर साहब की मुसीबत यहीं खत्म नहीं होती...अफसरशाही भी उनके आड़े आती है.....योजना से संबंधित अधिकारी कहते हैं हमारा महीना बांध दो....अब लो....मास्टर साहब कोई बिजनेस तो कर नहीं रहे..लेकिन दफ्तर के बाबू को तो सिर्फ अपना जेब गरम करने से मतलब है....अब मास्टर साहब सही तो कह रहे हैं कि भैया अगर बाबू को पैसा देंगे तो कहां से..अपनी सैलरी से तो नहीं ना...तो इसके लिए अनाज की चोरी करेंगे क्या....करनी तो पड़ेगी तभी बच्चों का पेट भरा जा सकेगा...या फिर मास्टर साहब सरकार से कहें कि भैया अपना कार्यक्रम बंद करो इसमें माथापच्ची बहुत है..लेकिन इससे तो बच्चों का नुकसान होगा...तो क्या मास्टर साहब घुसखोरी के खिलाफ लड़ाई में लग जाएं तो भैया इससे भी तो पढ़ाई का नुकसान होगा ..मतलब दोनों ही तरीकों में बच्चों का नुकसान ही हो रहा है...तो फिर रास्ता क्या है...आप सोचिए..चोरी या फिर मुंहजोरी...

1 टिप्पणी:

sunil ने कहा…

यार इस पर तो स्टोरी बननी चाहिए बकायदा। कहो अपने यहां इसे हाइलाइट करके पैकेज तैयार करे। दरअसल बिहार के अधिकतर स्कूलों में यही हाल है, जहां पढ़ाई के बजाय शिक्षक दूसरों कामों में ही बेवजह फंसे हुए हैं।