गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

वोट दो...वोट दो

अगर आप वोट नहीं कर रहे तो सो रहे हैं। ये एक एड की लाइन है.....बात सच है लेकिन कुछ हद तक....इसी एड में एक सवाल पूछा गया है ...किसको वोट दें और क्यों दें.....क्या आपको नहीं लगता ये सवाल एकदम स्वभाविक है...एक तरफ तो नेता युवा पीढ़ी से वोट की आशा करते हैं दूसरी तरफ उस युवा पीढ़ी के लिए वो पांच सालों तक कुछ नहीं करते॥हां अगर उनके घर में कोई युवा हो तो उसका सुनहरा भविष्य तय हैं.....क्यों मैं गलत कह रहा हूं...आप भी इत्तेफाक रखते होंगें....वोटिंग के प्रति युवा वर्ग की उदासीनता यूं ही नहीं पनपी है। इसके पीछे ठोस वजहें हैं और इन वजहों का कम से कम आने वाले समय में कोई निदान होता नहीं दिखता....क्या करे वो युवा जो दिन-रात कड़ी मेहनत करता है और फिर भी अपनी जरुरतों के लिए जूझता है?क्या करे वो युवा जो देखता है नेता दिनोंदिन भ्रष्ट होते जा रहे हैं औऱ अपनी जेब भरने में पीछे नहीं रहते? क्या करे वो युवा जो देखता है कि चुनाव के वक्त जिस प्रत्याशी को उन्होंने वोट दिया था वो चुनाव बाद किसी बड़े घोटाले में हिस्सेदार रहे नेता के साथ मिलकर सत्ता संभाल रहा है? क्या करे वो युवा जो देखता है कि नेता जी पांच साल में एक बार उसका हालचाल पूछने आते हैं और विकास के नाम पर उसके शहर की सिर्फ गलियां ढकी गई हैं?
ऐसे अनेक सवाल हैं इस युवा पीढ़ी के दिमाग में..और यही वजह है कि इन सवालों को और नहीं बढ़ाने के लिए युवा वोट नहीं कर रहे....क्या अब भी आप चाहते हैं कि युवा वोट करें....लेकिन किस उम्मीद से...क्रांति...ये शब्द छोटा है लेकिन अपने आप में बड़ा अर्थ रखता है......आप उस देश में क्रांति की क्या उम्मीद कर सकते हैं जहां एक युवा को घर चलाने के लिए बारह घंटे काम करना पड़ता है...उसके बाद घर की जिम्मेदारियां- बच्चे, रिश्तेदार और पड़ोसी.....समय कहां बचता देश के बारे में सोचने को....रात को सोने वक्त भी आफिस के दबाव और नौकरी कैसे बची रहे इसका ख्याल मन में उमड़ता रहता है...कमबख्त नींद भी नहीं आती सही से...लगता है हर चीज की तरह कुछ दिनों बाद नींद भी खरीदनी पड़ेगी......और गलती से देश के बारे में सोच भी लिया तो सरकार से लेकर प्रशासन को गाली देने के सिवा कुछ ज्यादा दिमाग में नहीं आता..चलो कुछ के मन में विकास, सुधार और महिला उत्थान जैसे मुद्दे आ भी जाएं तो इन मुद्दों पर लेक्चर देने तक ही विषय सीमित रहता है......क्यों...संसाधन की कमी का रोना...अब जब नेता ही हमेशा संसाधन का रोना रहते हैं तो हम तो जनता हैं.....तो समझे जनाब यही है युवाओं का वोट खेल

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