रविवार, 19 जुलाई 2009

जिंदगी का फलसफा...

हर किसी को है मेरी जरूरत
फिर भी है हर कोई खफा
हर किसी के लिए हूं मैं
लेकिन मेरे लिए नहीं कोई
क्यों जी रहा हूं मैं इन सबके लिए
क्यों चल रहा हूं मैं मझधार के साथ
गंगा तो मिलती है गंगोत्री से
मैं मिलूंगा क्या हर किसी से
होना है हर किसी का मुझे
पर ना जाने जी कुछ और करने को करता है
जीने के साथ रोज मरने को करता है
जीना तो है जीने के लिए
लेकिन कुछ करना है उन सबके लिए
जो हैं खफा-खफा
जो हैं जुदा-जुदा
आओ आज फिर से चलें नई मंजिल की ओर
खोजें जिंदगी का नया फलसफा......

2 टिप्‍पणियां:

sunil ने कहा…

की हो गया प्राजी...तुस्सी तो बड़ी सैड हो गए हो? वैसे कविता बहुत भावुक लिखी है...अच्छे उद्गार व्यक्त किए हैं।

सुजीत कुमार ने कहा…

आपने खुद लिखी है क्या। अच्छी कविता है। लेकिन आपका मूड कुछ समझ में नहीं आ रहा। सब ठीक ठाक तो है। अभी तो भाई आप सावन के तराने गाईए क्या ये जिंदगी के फलसफे में फंस रहे हैं। जिंदगी जीने की चीज है समझने की नहीं।