आपको यहां मिलेगी हर वो जानकारी जो मेरे जिंदगी से ताल्लुक रखती है, जिसे मैनें अपने आसपास देखा है और जो मैं आपसे बांटना चाहता हूं...
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रविवार, 1 नवंबर 2009
सरकार सिखा रही चोरी करना !
हाल ही में मैं छठ के मौके पर घर गया था...अपने गांव में छठ पूजा देखने का अलग आनंद है.....नदी किनारे कुछ लोगों का सुबह-शाम जमावड़ा और उनका उत्साह....बच्चे से लेकर बूढ़े तक हर कोई शामिल होता है छोटे-से-छोटे काम में। और ऐसे ही समय पर मतलब समझ आता है 'गांव' का...जी हां उस गांव का जिसका मतलब होता है सामाजिक जिम्मेदारी....जो शहरों में देखने को नहीं मिलती....खैर...इस बार मुझे गांव के स्कूल के मास्टर साहब के कुछ वचन सुनने को मिले....उनके वचन कितने सच थे या उस पर झूठ का परदा लगाया गया था...इसका फैसला आप ही करें....मास्टर जी कहना था कि सरकार हमें चोर बना रही है.....कैसे भई....दरअसल गांव के स्कूलों में दोपहर भोजन का कार्यक्रम सरकार चला रही है....जिसको चलाने की पूरी की पूरी जिम्मेदारी स्कूल के शिक्षकों पर होती है.....मास्टर साहब का कहना था कि एक तो बच्चों को खाना खिलाने के पचड़े में पढ़ाने का काम खराब होता है...कैसे...अब खाना तो कोई पैकेज फूड है नहीं कि बच्चों को दे दिया और हो गया काम...अब एक मास्टर साहब इसी काम में लगे रहते हैं कि खाना बनाने वाला आया कि नहीं....रसोइया कहीं खाने के सामान में से चोरी तो नहीं कर रहा....अगर खाना सही न पका हो तो गांव वाले कहीं पिटाई न कर दें..किसी दिन खाने में कुछ कीड़ा-वीड़ा या कंकर पत्थर निकला तो मास्टर साहब की खैर नहीं....अब भई गांव वाले को कौन बताए कि आनाज सप्लाई करने वाला ठेकेदार लाख कहने पर भी सुनता नहीं...और जितना हो सके पैसे बचाने की जुगत में रहता है...अब अगर उससे कोई शिकायत करे तो करे कैसे गांव या फिर आसपास के बाहुबली जो ठहरे....कहीं लेने के देने न पड़ जाएं.....मास्टर साहब की मुसीबत यहीं खत्म नहीं होती...अफसरशाही भी उनके आड़े आती है.....योजना से संबंधित अधिकारी कहते हैं हमारा महीना बांध दो....अब लो....मास्टर साहब कोई बिजनेस तो कर नहीं रहे..लेकिन दफ्तर के बाबू को तो सिर्फ अपना जेब गरम करने से मतलब है....अब मास्टर साहब सही तो कह रहे हैं कि भैया अगर बाबू को पैसा देंगे तो कहां से..अपनी सैलरी से तो नहीं ना...तो इसके लिए अनाज की चोरी करेंगे क्या....करनी तो पड़ेगी तभी बच्चों का पेट भरा जा सकेगा...या फिर मास्टर साहब सरकार से कहें कि भैया अपना कार्यक्रम बंद करो इसमें माथापच्ची बहुत है..लेकिन इससे तो बच्चों का नुकसान होगा...तो क्या मास्टर साहब घुसखोरी के खिलाफ लड़ाई में लग जाएं तो भैया इससे भी तो पढ़ाई का नुकसान होगा ..मतलब दोनों ही तरीकों में बच्चों का नुकसान ही हो रहा है...तो फिर रास्ता क्या है...आप सोचिए..चोरी या फिर मुंहजोरी...
रविवार, 2 अगस्त 2009
एक चुटकी सिंदूर
एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो राजेश बाबू......फिल्मी पर्दे पर इस डॉयलॉग को सुनकर आप भले ही हंसते हों लेकिन सचमुच एक चुटकी सिंदूर की कीमत को समझना बहुत मुश्किल है.....ये एक चुटकी सिंदूर आपके जीवन को कितना बदल देता है? ।न्यूज की भाषा में कहें तो आपके जीवन में हाई टाइड ला देता है.....अब देखिए राखी को एक चुटकी सिंदूर डालने के लिए कितना बड़ा ड्रामा रचा गया और इस ड्रामा का हिस्सा भी बने हजारों लोग......मैंने अक्सर लोगों को कहते सुना है कि .......तुम शादी के बाद बदल गए हो.....भगवान जाने इसमें कितनी सच्चाई है लेकिन अगर इसमें थोड़ी भी सच्चाई है तो आप सिंदूर की कीमत को समझ सकते हैं.....अच्छा हो या बुरा...लेकिन सिंदूर एक शख्स की जिंदगी को बदलने तक की ताकत रखता है.........क्या ये कम है? आज मेरी एक दोस्त से बात हुई उसने मुझे बताया कि उसके परिवार के सदस्य उसे कहते हैं कि तुम शादी के बाद बदल गए हो......और वो इस बात को लेकर परेशान था....कि आखिर परिवार वाले ऐसा क्यों कहते हैं.....ये सच है कि शादी के बाद लोगों में बदलाव आता है और ये गलत भी नहीं.....शादी के बाद आपका ध्यान बंटता है और आपका प्यार भी...स्वभाविक है आपकी मां, बहन औऱ अन्य रिश्तेदारों को इसकी कमी खलेगी..... आप जितना ध्यान पहले अपने परिवार वालों को देते थे उतना शादी के बाद नहीं दे पाते...कैसे देंगे....शादी एक ऐसा गठबंधन होता है जिसे चलाने के लिए आपको संभल संभल कर कदम रखना होता है....खास कर जब आप अभी-अभी इस गठबंधन का हिस्सा बने हों......ऐसे में परिवार वालों को भी ये समझना चाहिए कि शादी के बाद लड़के बदलते नहीं...ये कुछ ऐसा ही है जैसे एक औरत को जब दूसरा बच्चा होता है तो पहले बच्चे से ध्यान थोड़ा कम हो जाता है....केवल ध्यान कम होता है वो भी कुछ समय के लिए.....प्यार कम नहीं होता.....
रविवार, 19 जुलाई 2009
जिंदगी का फलसफा...
हर किसी को है मेरी जरूरत
फिर भी है हर कोई खफा
हर किसी के लिए हूं मैं
लेकिन मेरे लिए नहीं कोई
क्यों जी रहा हूं मैं इन सबके लिए
क्यों चल रहा हूं मैं मझधार के साथ
गंगा तो मिलती है गंगोत्री से
मैं मिलूंगा क्या हर किसी से
होना है हर किसी का मुझे
पर ना जाने जी कुछ और करने को करता है
जीने के साथ रोज मरने को करता है
जीना तो है जीने के लिए
लेकिन कुछ करना है उन सबके लिए
जो हैं खफा-खफा
जो हैं जुदा-जुदा
आओ आज फिर से चलें नई मंजिल की ओर
खोजें जिंदगी का नया फलसफा......
फिर भी है हर कोई खफा
हर किसी के लिए हूं मैं
लेकिन मेरे लिए नहीं कोई
क्यों जी रहा हूं मैं इन सबके लिए
क्यों चल रहा हूं मैं मझधार के साथ
गंगा तो मिलती है गंगोत्री से
मैं मिलूंगा क्या हर किसी से
होना है हर किसी का मुझे
पर ना जाने जी कुछ और करने को करता है
जीने के साथ रोज मरने को करता है
जीना तो है जीने के लिए
लेकिन कुछ करना है उन सबके लिए
जो हैं खफा-खफा
जो हैं जुदा-जुदा
आओ आज फिर से चलें नई मंजिल की ओर
खोजें जिंदगी का नया फलसफा......
रविवार, 12 अप्रैल 2009
इंतहा हो गई इंतजार की...
उससे किए वादे को निभाना मुश्किल हो रहा है, प्यार की इतनी बड़ी कीमत चुकानी होगी, सोचा न था...उससे जुदा रहना मुश्किल हो रहा....महीने का दर्द सालों जैसा लग रहा है...पता नहीं सालों की जुदाई कौन सा दर्द दे जाए......तनाव और गम जीवन का हिस्सा बनते जा रहे हैं जैसे जैसे उसका फिर से लौटकर आना टलता जा रहा है.....लगता है अब जान जाने के बाद ही बहार आएगी.......आप युवा होते हैं तो प्यार का खुमार चढ़ता है, लेकिन ये प्यार कम और आकर्षण ज्यादा होता है या यूं कहें कि कुछ पाने की इच्छा ज्यादा होती है या पूरी ईमानदारी से कहें तो यौन पिपासा ज्यादा होती हैं.....लेकिन जब आपका ध्यान इससे हटता है और आपको सही में प्यार होता है मतलब जब आप सही में एक-दूसरे की नजरों से ओझल होकर जी नहीं पाते तो असल में ये प्यार का खुमार होता है.....और इसी खुमार में जी रहा हूं मैं....इंतहा हो गई इंतजार की..........लेकिन ये इंतजार खत्म होने वाली नहीं...क्योंकि इसमें कई अड़चने हैं...कभी आपने सोचा है किसी के इंतजार में पूरी जिंदगी बिताना कैसा रहेगा....हर रोज नई उम्मीदें, हर रोज नया सपना...हालांकि हर शाम सपने के टूटने का गम उस पर ज्यादा भारी पड़ता है....आप गुस्से और निराशा का शिकार होते हैं...फिर अगली सुबह......? लेकिन क्या आपने कभी उसके बारे में सोचा है जिसके इंतजार में आप अपनी जिंदगी गुजारते हैं, आपके पास जीने के बहुत सारे सहारे हैं और समाज भी आपको बहुत सारी रियायतें देता है.....लेकिन उसे नहीं.....एक अकेली लड़की...ढेर सारे सपने और मनचाहे जीवनसाथी की तलाश....लेकिन मिलता क्या है मजबूरियों के नाम पर टूटते सपनों का संसार और अकेलापन...ये कहना आसान है....दूसरे की तलाश..लेकिन इस दूसरे को स्वीकार करना उससे भी ज्यादा मुश्किल.....ऐसा करने पर आपको महसूस होता है जैसे कि आप कसाई के यहां अपनी गर्दन कटने का इंतजार कर रहे हों...न खुलकर सांस ले पाते हैं और न ही दिल की बातें किसी से बोल पाते हैं......लेकिन इन सब के बावजूद जीना पड़ता है....क्योंकि इसी का नाम जिंदगी है.......
गुरुवार, 9 अप्रैल 2009
वोट दो...वोट दो
अगर आप वोट नहीं कर रहे तो सो रहे हैं। ये एक एड की लाइन है.....बात सच है लेकिन कुछ हद तक....इसी एड में एक सवाल पूछा गया है ...किसको वोट दें और क्यों दें.....क्या आपको नहीं लगता ये सवाल एकदम स्वभाविक है...एक तरफ तो नेता युवा पीढ़ी से वोट की आशा करते हैं दूसरी तरफ उस युवा पीढ़ी के लिए वो पांच सालों तक कुछ नहीं करते॥हां अगर उनके घर में कोई युवा हो तो उसका सुनहरा भविष्य तय हैं.....क्यों मैं गलत कह रहा हूं...आप भी इत्तेफाक रखते होंगें....वोटिंग के प्रति युवा वर्ग की उदासीनता यूं ही नहीं पनपी है। इसके पीछे ठोस वजहें हैं और इन वजहों का कम से कम आने वाले समय में कोई निदान होता नहीं दिखता....क्या करे वो युवा जो दिन-रात कड़ी मेहनत करता है और फिर भी अपनी जरुरतों के लिए जूझता है?क्या करे वो युवा जो देखता है नेता दिनोंदिन भ्रष्ट होते जा रहे हैं औऱ अपनी जेब भरने में पीछे नहीं रहते? क्या करे वो युवा जो देखता है कि चुनाव के वक्त जिस प्रत्याशी को उन्होंने वोट दिया था वो चुनाव बाद किसी बड़े घोटाले में हिस्सेदार रहे नेता के साथ मिलकर सत्ता संभाल रहा है? क्या करे वो युवा जो देखता है कि नेता जी पांच साल में एक बार उसका हालचाल पूछने आते हैं और विकास के नाम पर उसके शहर की सिर्फ गलियां ढकी गई हैं?
ऐसे अनेक सवाल हैं इस युवा पीढ़ी के दिमाग में..और यही वजह है कि इन सवालों को और नहीं बढ़ाने के लिए युवा वोट नहीं कर रहे....क्या अब भी आप चाहते हैं कि युवा वोट करें....लेकिन किस उम्मीद से...क्रांति...ये शब्द छोटा है लेकिन अपने आप में बड़ा अर्थ रखता है......आप उस देश में क्रांति की क्या उम्मीद कर सकते हैं जहां एक युवा को घर चलाने के लिए बारह घंटे काम करना पड़ता है...उसके बाद घर की जिम्मेदारियां- बच्चे, रिश्तेदार और पड़ोसी.....समय कहां बचता देश के बारे में सोचने को....रात को सोने वक्त भी आफिस के दबाव और नौकरी कैसे बची रहे इसका ख्याल मन में उमड़ता रहता है...कमबख्त नींद भी नहीं आती सही से...लगता है हर चीज की तरह कुछ दिनों बाद नींद भी खरीदनी पड़ेगी......और गलती से देश के बारे में सोच भी लिया तो सरकार से लेकर प्रशासन को गाली देने के सिवा कुछ ज्यादा दिमाग में नहीं आता..चलो कुछ के मन में विकास, सुधार और महिला उत्थान जैसे मुद्दे आ भी जाएं तो इन मुद्दों पर लेक्चर देने तक ही विषय सीमित रहता है......क्यों...संसाधन की कमी का रोना...अब जब नेता ही हमेशा संसाधन का रोना रहते हैं तो हम तो जनता हैं.....तो समझे जनाब यही है युवाओं का वोट खेल
ऐसे अनेक सवाल हैं इस युवा पीढ़ी के दिमाग में..और यही वजह है कि इन सवालों को और नहीं बढ़ाने के लिए युवा वोट नहीं कर रहे....क्या अब भी आप चाहते हैं कि युवा वोट करें....लेकिन किस उम्मीद से...क्रांति...ये शब्द छोटा है लेकिन अपने आप में बड़ा अर्थ रखता है......आप उस देश में क्रांति की क्या उम्मीद कर सकते हैं जहां एक युवा को घर चलाने के लिए बारह घंटे काम करना पड़ता है...उसके बाद घर की जिम्मेदारियां- बच्चे, रिश्तेदार और पड़ोसी.....समय कहां बचता देश के बारे में सोचने को....रात को सोने वक्त भी आफिस के दबाव और नौकरी कैसे बची रहे इसका ख्याल मन में उमड़ता रहता है...कमबख्त नींद भी नहीं आती सही से...लगता है हर चीज की तरह कुछ दिनों बाद नींद भी खरीदनी पड़ेगी......और गलती से देश के बारे में सोच भी लिया तो सरकार से लेकर प्रशासन को गाली देने के सिवा कुछ ज्यादा दिमाग में नहीं आता..चलो कुछ के मन में विकास, सुधार और महिला उत्थान जैसे मुद्दे आ भी जाएं तो इन मुद्दों पर लेक्चर देने तक ही विषय सीमित रहता है......क्यों...संसाधन की कमी का रोना...अब जब नेता ही हमेशा संसाधन का रोना रहते हैं तो हम तो जनता हैं.....तो समझे जनाब यही है युवाओं का वोट खेल
गुरुवार, 2 अप्रैल 2009
प्यार हुआ, कई-कई बार हुआ
मैनें सुना है कि ज्यादातर लड़कियों के प्यार की शुरुआत सिर्फ इस बात से होती है क्योंकि वो जीतना चाहती..जीतना लड़कों से...शायद लड़कों को अपने सामने गिड़गिड़ाता देख उन्हें खुशी होती है कि वो समाज की अगुवाई करने वाले तथाकथित पुरुष वर्ग को झुकाने में कामयाब रही....ये सिक्के का एक पहलू हो सकता है लेकिन क्या इसका दूसरा पहलू भी है......जरूर.....इसके दूसरे पहलू में प्यार को उपासना, पूजा जैसे शब्दों से अलंकृत किया जाता है और कुछ हद तक सही भी होता है....कुछ हद तक इसलिए कि मैं समझता हूं कि लड़कियां ही इसमें अक्सर ईमानदार होती हैं....जहां तक लड़कों के प्यार की बात है तो वो हमेशा दिमाग से होता है दिल से नहीं..आप कह सकते हैं कि वो प्यार में भी पूरी तरह प्रोफेशनल होते हैं......अब 21वीं सदी की लड़कियां भी लड़कों के प्यार को अमल में ला रही हैं...
प्यार की चर्चा इसलिए कि हमें भी प्यार हुआ और कई-कई बार हुआ...ये अलग बात है कि मैं कभी इस मामले में सफल नहीं रहा...क्यों पता नहीं लेकिन जो बातें मैंने ऊपर लिखी उसका पता मुझे जरूर चल गया....
दर्द है सुबह शाम लेकिन...
बदलते वक्त के साथ हम भी बदल रहे हैं और बदल रही हैं हम से जुड़ी जिंदगियां...हमारे वजूद में भी फर्क आ रहा है.....तो क्या समय का पहिया सिर्फ औऱ सिर्फ हमें बदलने के लिए बना है...लगता तो यही है.. जब हम बच्चे तो पैसे कमाने और हर चीज पाने की चाहत इतनी प्रबल थी कि पढ़ाई में ध्यान कम और इस इच्छा की पूर्ति कैसे की जाए इस पर ज्यादा होती थी...फिर हम जवां हुए और हमारी चाहत किसी का प्यार पाने और जो कुछ पैसे हमारे पास थे उसको दोगुने करने की हुई....किसी ने सच कहा है भूख कभी शांत नहीं होती..वो चाहे पैसे की हो या पेट की या फिर शारीरिक....लेकिन इन सब के बीच हमने बुहत कुछ खोया...खोया अपना बचपन..खोयी अपनी जवानी और खोया अपना आज और बहुत हद तक कल भी.....फिर क्या पाया हमने...आज जब इस सवाल का जवाब खुद से मांगता हूं तो लगता है शायद कुछ नहीं... जिंदगी की सिलवटें परत-दर-परत खोलते हुए भी शर्म आती है आखिर किस लिए संघर्ष कर रहे हैं हम क्या वो पाने के लिए जिसको पाकर हम खुश नहीं या वो पाने के लिए जिससे हम दूसरों को नीचा दिखा सकें या फिर समाज में रुतबा पाने की होड़ में हमने अपनी खुशी गुम कर दी....सवाल कई हैं लेकिन जवाब नहीं..आखिर जवाब आए भी तो कहां से और किस मुंह से..जिस सफलता की डींगे हांकते हम नहीं थकते उसकी बुराई हम कैसे करें..ज्यादती होगी...ये दर्द सिर्फ मेरा नहीं जहां तक मैं समझता हूं ये दर्द मेरे जेनरेशन की युवा पीढ़ी का है और इस आग में हम सब जल रहे हैं...दर्द है सुबह शाम लेकिन मुंह से उफ तक नहीं निकलती...खैर जीवन रूपी नैया शायद इसी तरह चले क्योंकि हमसे क्रांति या बदलाव की उम्मीद बेकार है..हम आदी हो चुके हैं उस जिंदगी की जो हमें पसंद नहीं और जिसको बदल देने की कसमें हम रोज खाते हैं...
गुरुवार, 3 अप्रैल 2008
खेल की राजनीति या फिर राजनीति का खेल
यूं तो शोएब पाक में खेल की गंदी राजनीति का शिकार हुए हैं लेकिन ये बात भी उतना ही सच है जितना कि वो बदमिजाज भी कम नहीं ......ये तो हुई शोएब और उन पर हुई कारर्वाई की बात......लेकिन अगर इस घटना से जुड़े अन्य पहलुओं पर विचार करेंगे तो पाएंगे कि शोएब सिर्फ पाकिस्तान में चल रही राजनीति की ही नहीं एक तरह से खेल में हो रही गुटबाजी औऱ अन्तरराष्ट्रीय राजनीति के बीच फंस गए.... कैसे? अब देखिए पाक ने जैसे ही पाबंदी लगाई वैसे ही इंडियन प्रीमियर लीग ने भी उनसे नाता तोड़ने की मंशा जाहिर कर दी....हालांकि शाहरुख, जिनकी टीम के लिए शोएब खलेने वाले थे, ने कहा है कि शोएब के न होने से उनकी टीम प्रभावित होगी और वो मीटिंग कर रहे हैं.....पर इन सबके पीछे की घटनाओं पर विचार कीजिए आखिर पाक में पाबंदी लगने पर आईपीएल से शोएब को हटाने का कारण क्या हो सकता है....जाहिर है अगर शोएब को आईपीएल में खेलने दिया गया तो पाक बीसीसीआई से नाराज हो सकता है...हो सकता है इस नाराजगी में वो आईपीएल का बहिष्कार कर दे या फिर आईसीएल के खिलाड़ियों को टीम में जगह दे दे......जो हरगिज बीसीसीआई को गंवारा नहीं होगा.......अगर पाक ने ऐसा किया तो आईसीएल कुछ हद तक आईपीएल को चुनौती दे सकता है या यूं कह सकते हैं कि खेल राजनीति का परिदृश्य कुछ हद तक बदल सकता है जिससे आईसीएल को फायदा और आईपीएल को हानि पहुंच सकती है..... बोर्ड अध्यक्ष डालमिया ये हरगिज नहीं चाहेंगे कि आईपीएल के लिए कोई चुनौती बने....बोर्ड अध्यक्ष ही क्यों विश्व का कोई भी बोर्ड ये नहीं चाहेगा....क्योंकि उनके खिलाड़ियों के हित आईपीएल से जुड़े हैं....इस तरह आईपीएल प्रशासन पर ये भारी दबाव है कि शोएब किसी भी हालत में आईपीएल टीम की ओर से गेंद न फेंक सकें.....खैर देखते हैं खेल की राजनीति या फिर राजनीति के इस खेल में आगे क्या होता है.....
रविवार, 6 जनवरी 2008
Sledging in Gentleman Game
अभी तक बात सिर्फ स्लेजिंग तक थी लेकिन अब हद हो चुकी है। जो दोषी नहीं उसे सजा मिल रही है और जो दोषी हैं उन्हें छोड़ दिया जा रहा है। हरभजन पर प्रतिबंध सरासर गलत है। बीसीसीआई को चाहिए था कि वो तुरंत घोषणा करती - टीम इंडिया लौट रही है। लेकिन नहीं, वही पुराना ढर्रा अपील करेंगे.... शर्मनाक है ऐसा रवैया। आखिर आपका क्या सम्मान रह गया। आपकी बात नहीं मानी गई। जी हां, भज्जी के खिलाफ सुनवाई में सचिन की बात को तव्वजो नहीं दिया गया जबकि हेडेन और क्लार्क की बातों पर गौर किया गया। इतना ही नहीं बिना किसी सबूत के आधार पर भज्जी को तीन टेस्ट मैच के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अब तक हम खेल भावना से थोड़ी बहुत स्लेजिंग को ignore करते रहे हैं। पर अब जो भारतीय खिलाड़ियों के साथ हुआ है उससे खेल प्रेमियों की भावनाएं काफी आहत हुई हैं। मेरी नजर में तो आईसीसी का रवैया ही नस्लभेदी है? आखिर हर बार भारतीयों की अपील अनसुनी क्यो कर दी जाती है। दरअसल ऑस्ट्रेलियाईयों ने अब क्रिकेट को पूरी तरह mind game बना लिया है। और वो इसके लिए सभी हदें पार कर रहे हैं। सीरीज में बेईमानियों की हद हो गई। अंपायरों ने एक-दो नहीं कई गलत फैसले दिए। वो भी सिर्फ भारतीयों को नुकसान पहुंचाने वाले..... इसे क्या कहेंगे आप ?
गुरुवार, 13 दिसंबर 2007
न्यायपालिका बनाम न्यायपालिका
लीजिए, पहले तो न्यायपालिका पर कार्यपालिका अपने अधिकार क्षेत्र के अतिक्रमण का आरोप लगाया करती थी लेकिन अब तो भाई न्यायपालिका के भीतर ही जंग झिड़ती नजर आ रही है। जैसा कि आपने अखबारों में पढ़ा और टीवी पर सुना होगा, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एके माथुर और मार्कंडेय काटजू की पीठ ने कहा था कि न्यायपालिका की सक्रियता के नाम पर कार्यपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करना असंवैधानिक है। लेकिन अब खुद मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट न्यायपालिका की सक्रियता पर हाल में की गई दो जजों की पीठ की टिप्पणी से बँधा नहीं है। अब भाई ऐसा नहीं तो कम से कम सोच-विचार कर ऐसे फैसले सुनाए जाने चाहिए न, पब्लिक में भ्रम क्यों फैलाते हैं। ये तो सब जानते थे कि जज कानून बना कर उसे लागू नहीं करवा सकते, तो फैसले में नई बात क्या थी। थी न नई बात लेकिन उसे तो न्यायपालिका के प्रधान ने ही खारिज कर दिया। लेकिन थोड़े दिनों के लिए ही सही जनता के प्रतिनिधि काफी खुश हुए...अफसोस उनकी खुशी अब काफुर हो गई। लेकिन न्यायपालिका के इस विवादास्पद फैसले पर कार्यपालिका चुटकी लेने से पीछे नहीं रहेगी....
मंगलवार, 27 नवंबर 2007
मैनें लिखा...

नमस्कार,
मेरे एक दोस्त ने मुझे अपने ब्लॉग का लिंक भेजा। मैनें वहां जो कुछ लिखा उसका संपादित अंश आपके लिए यहां भी .......
ब्लॉग के होम पेज पर पढ़ा कि अपने विचार या दिल की बात यहां रख सकते हैं। कौन से दिल की बात, वो जो खुद मैं अपने आप से नहीं कह पाता या फिर वो जिनको कहने की हिम्मत लाखों लोगों में नहीं होती। आपने तो वो गाना सुना ही होगा, हर चेहरे के पीछे एक चेहरा छुपा लेते हैं लोग.........यारों दुनिया यूं ही चल रही है। कम से कम मेरे हिसाब से तो ऐसा ही है। तभी तो दिल की बात जुबां पर नहीं आती। हर शब्द बोलने से पहले हजार बार सोचते हैं लोग। इज्जत, सोहरत और स्टेटस के साथ अपने भविष्य की चिंता आप जोड़ते हैं आपके कथन के साथ। सोची हुई चीज कभी दिल की बात हो ही नहीं सकती, कैसा लगता है आपको ? दिल की बात तो अनायास या बिना रोक-टोक जुबां पर आनी चाहिए। RK का आपको सलाम...........गलतियों के लिए माफी चाहूंगा, लेकिन हां अगर आपकी प्रतिक्रिया मिली तो उसे प्रोत्साहन मानने की हिमाकत जरूर करूंगा। धन्यवाद।
मेरे एक दोस्त ने मुझे अपने ब्लॉग का लिंक भेजा। मैनें वहां जो कुछ लिखा उसका संपादित अंश आपके लिए यहां भी .......
ब्लॉग के होम पेज पर पढ़ा कि अपने विचार या दिल की बात यहां रख सकते हैं। कौन से दिल की बात, वो जो खुद मैं अपने आप से नहीं कह पाता या फिर वो जिनको कहने की हिम्मत लाखों लोगों में नहीं होती। आपने तो वो गाना सुना ही होगा, हर चेहरे के पीछे एक चेहरा छुपा लेते हैं लोग.........यारों दुनिया यूं ही चल रही है। कम से कम मेरे हिसाब से तो ऐसा ही है। तभी तो दिल की बात जुबां पर नहीं आती। हर शब्द बोलने से पहले हजार बार सोचते हैं लोग। इज्जत, सोहरत और स्टेटस के साथ अपने भविष्य की चिंता आप जोड़ते हैं आपके कथन के साथ। सोची हुई चीज कभी दिल की बात हो ही नहीं सकती, कैसा लगता है आपको ? दिल की बात तो अनायास या बिना रोक-टोक जुबां पर आनी चाहिए। RK का आपको सलाम...........गलतियों के लिए माफी चाहूंगा, लेकिन हां अगर आपकी प्रतिक्रिया मिली तो उसे प्रोत्साहन मानने की हिमाकत जरूर करूंगा। धन्यवाद।
स्वागत है

नमस्कार बंधुओं,
यूं तो हमें लिखने की आदत नहीं, लेकिन अधिकतर साथियों को ब्लॉग बनाते देख मैनें भी सोचा, क्यों न मैं भी एक बना डालूं। अब देखते हैं कि कितने दिनों तक मैं इसे चला पाता हूं। जी हां, क्योंकि तीन साल से भी अधिक समय तक .com में काम करने के बाद मैनें कोई ब्लॉग नहीं बनाया, अब तो मैं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हूं। खैर छोड़ियो... अभी तक मैनें अपने ब्लॉग के लिए कोई विषय तो चुना नहीं है लेकिन जैसा कि नाम (जरा सुनिए तो) से जाहिर है कि यहां आपको मेरी बातें पढ़ने को मजबूर होना पड़ेगा। डरिए मत आप भी अपनी बात यहां कह सकते हैं......... अच्छा-बुरा, नेशनल-इंटरनेशनल, अपनी और दूसरों की..... तो आप सबका यहां स्वागत है। RK का आपको सलाम...........धन्यवाद।
यूं तो हमें लिखने की आदत नहीं, लेकिन अधिकतर साथियों को ब्लॉग बनाते देख मैनें भी सोचा, क्यों न मैं भी एक बना डालूं। अब देखते हैं कि कितने दिनों तक मैं इसे चला पाता हूं। जी हां, क्योंकि तीन साल से भी अधिक समय तक .com में काम करने के बाद मैनें कोई ब्लॉग नहीं बनाया, अब तो मैं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हूं। खैर छोड़ियो... अभी तक मैनें अपने ब्लॉग के लिए कोई विषय तो चुना नहीं है लेकिन जैसा कि नाम (जरा सुनिए तो) से जाहिर है कि यहां आपको मेरी बातें पढ़ने को मजबूर होना पड़ेगा। डरिए मत आप भी अपनी बात यहां कह सकते हैं......... अच्छा-बुरा, नेशनल-इंटरनेशनल, अपनी और दूसरों की..... तो आप सबका यहां स्वागत है। RK का आपको सलाम...........धन्यवाद।
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