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गुरुवार, 13 दिसंबर 2007
न्यायपालिका बनाम न्यायपालिका
लीजिए, पहले तो न्यायपालिका पर कार्यपालिका अपने अधिकार क्षेत्र के अतिक्रमण का आरोप लगाया करती थी लेकिन अब तो भाई न्यायपालिका के भीतर ही जंग झिड़ती नजर आ रही है। जैसा कि आपने अखबारों में पढ़ा और टीवी पर सुना होगा, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एके माथुर और मार्कंडेय काटजू की पीठ ने कहा था कि न्यायपालिका की सक्रियता के नाम पर कार्यपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करना असंवैधानिक है। लेकिन अब खुद मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट न्यायपालिका की सक्रियता पर हाल में की गई दो जजों की पीठ की टिप्पणी से बँधा नहीं है। अब भाई ऐसा नहीं तो कम से कम सोच-विचार कर ऐसे फैसले सुनाए जाने चाहिए न, पब्लिक में भ्रम क्यों फैलाते हैं। ये तो सब जानते थे कि जज कानून बना कर उसे लागू नहीं करवा सकते, तो फैसले में नई बात क्या थी। थी न नई बात लेकिन उसे तो न्यायपालिका के प्रधान ने ही खारिज कर दिया। लेकिन थोड़े दिनों के लिए ही सही जनता के प्रतिनिधि काफी खुश हुए...अफसोस उनकी खुशी अब काफुर हो गई। लेकिन न्यायपालिका के इस विवादास्पद फैसले पर कार्यपालिका चुटकी लेने से पीछे नहीं रहेगी....
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1 टिप्पणी:
I really liked ur article on Judicialry. I always have an idea that you writink skill is very good, now i have got the opportunity to see it also. As far as my view is concerned we know that supreme court is the institution which defines our constitution. If this thing will be applicable to this institution then i think there will be anarchy. As we know that how our leaders work. we can take the example of "Office of Profit bill" how categarically some posts excluded from it. same post was seen not profitable in one state and profitable in diffrent state. then president raised question on that bill. bill got passed becoz parliament has some specific powers profided by constitution. take another example of Bihar how then governer of state put down the Nitish government and supreme court held governer guilty. Its ok that supreme court has given a verdict on a particular issue it means not that it should be applicable to all issues. if some high courts are poking there nose in legislative isues without any good reason then supreme court can ask them not to do that. it means not that supreme court is also abide by that verdict
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